शिक्षा को लेकर हमारे समाज में बहुत से नए बदलाव हुए हैं पर अच्छे नहीं बुरे क्योंकि हमारे समाज मे शिक्षा का स्तर दिन पर दिन बिगड़ता ही जा रहा है जिसको लेकर न ही केंद्र सरकारें चिंतित हैं और न ही राज्य सरकार। पर वहीं दूसरी तरफ जब दाखिला आदि से जुड़ा काम कराने कोई शरीफ आदमी सामने आता है तो उसे लूटने का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। और इस बार बेचारा एक दलित छात्र शिक्षको की इस साजिश का शिकार हुआ है।
फीस न भरने के कारण IIT बॉम्बेमें सीट पाने से चूका छात्र
अब एक मामला सामने आया है जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सुप्रीम कोर्ट उस दलित छात्र के बचाव में आगे आया है जिसे आईआईटी बॉम्बे में प्रवेश तो मिल गया था लेकिन समय पर फीस न भरने के कारण सीट पाने से चूक गया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने छात्र को और उसके परिवार को राहत प्रदान करते हुए 48 घंटे के भीतर छात्र को बॉम्बे IIT में दाखिला देने के आदेश दिए है। जिस पर कोर्ट ने विद्यालय के अधिकारियों और शिक्षको को कहा कि दलित छात्र की सीट के लिए किसी दूसरे छात्र की सीट ना ली जाए बल्कि इस प्रतिभावान दलित छात्र को उपयुक्त सीट से दाखिला दिया जाए।
अदालत को कभी-कभी कानून से ऊपर उठकर भी कदम उठाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत को कभी- कभी कानून से ऊपर उठकर भी कदम उठाना चाहिए, क्योंकि कौन जानता है, कि आगे चलकर 10 साल बाद वह हमारे देश का नेता हो सकता है। साथ ही अदालत ने केंद्र की ओर से पेश किए गए वकील को निर्देश दिया था कि वह आईआईटी, बंबई में दाखिले का ब्योरा हासिल करें और इस संभावना का पता लगाएं कि उस छात्र को कैसे प्रवेश मिल सकता है। जिसपर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि छात्र ने आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास की है और IIT बॉम्बे में दाखिला लेने वाला था। वह दाखिले के लिए उपयुक्त उम्मीदवार है।
कोर्ट ने मानवीय दृष्टिकोण के तहत छात्र को एक्स्ट्रा सीट देने के दिए आदेश
साथ ही कोर्ट के आदेश के बाद आईआईटी के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि कोई भी सीट खाली नहीं है। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों से स्थिति के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखते हुए एक्स्ट्रा सीट देने को कहा है। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि छात्र को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता है। वह एक दलित लड़का है और अधिकारियों को जमीनी हकीकत को समझना होगा। कोर्ट ने अधिकारियों से छात्र से बात करने और कोई रास्ता निकालने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब अब छात्रो को बहुत हद तक राहत प्रदान होगी कि एक ऐसी जगह है जहां वे भी इन अधिकारियों और शिक्षको के खिलाफ अपनी अर्जी लगा सकते है और उन्हे इंसाफ मिल सकता है फिर चाहे वो कितना ही बड़ा संस्थान क्यों न हो ?