चुनावी मैदानो मे जनता को रिझाकर अपने पक्ष मे लाने को लेकर सभी पार्टियां हर प्रकार के झूठे वादे करती है पर सत्ता मे आने के बाद वे सारे वादे छू मंतर हो जाते है और कई वादे तो मुफ्त उपहारो को लेकर भी होते है जिनको लेकर विरोध जताते हुए और राजनीतिक पार्टियों को फटकार लगाते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की। इस पर चिंता जताते हुए सीजेआई एन वी रमणा ने कहा कि निस्संदेह यह एक गंभीर मुद्दा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार इस मुद्दे पर कह चुका है कि यह एक खेल का मैदान नहीं है। पार्टियां चुनाव जीतने के लिए और ज्यादा वादे करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार से जनता से किए वादो को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अपने सीमित दायरे में हमने निर्वाचन आयोग को दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए कहा था। हमारे निर्देशों के बाद चुनाव आयोग ने पार्टियों के साथ सिर्फ एक बैठक की। उन्होंने राजनीतिक दलों से विचार मांगे थे। यहां तक तो हमें पता है, लेकिन उसके बाद क्या हुआ मुझे नहीं पता।
साथ ही उन्होने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से भी पूछा कि उन्होंने सिर्फ पार्टियों को ही शामिल क्यों किया है, जबकि सभी स्टेक होल्डर्स की भी इस नीति निर्माण में सहभागिता जरूरी है। इतना ही नहीं कोर्ट ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से भी यह भी पूछा कि तमाम राजनीतिक दल वादे कर रहे हैं तो आपने सभी पार्टियों की जगह सिर्फ दो पार्टियों का ही जिक्र क्यों किया। जिसपर याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि वह बाकी पार्टियों को भी इसमें शामिल करवाने की कोशिश करेंगे।
साथ ही कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से पूछा कि क्या चुनाव से पहले वोटर्स से किए गए मुफ्त उपहारों के वादे को पूरा करने के लिए भी विचार किया जाता है? जिसपर याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि सरकारी फंड से मुफ्त उपहार बांटने का वादा स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है। इसलिए इसे अपराध घोषित किया जाना चाहिए।