सुप्रीम कोर्ट ने तय कि ड्यूटी के दौरान लापरवाही बरतने को लेकर CISF कांस्टेबल की बर्खास्तगी

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[ KABEER NEWS DESK]

देश के सुरक्षा के लिहाज से जिन हाथों में ये जिम्मेदारी सौंपी जाती है उन पर सख्ती जरूरी होती है और उसकी सुरक्षा से खिलवाड़ करने वालों पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अब ऐसी ही लापरवाही से जुड़ा एक मामला सामने आया है जिसके तहत सीआईएसएफ के एक कांस्टेबल पर सख्त कार्रवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के द्वारा कांस्टेबल को बर्खास्त करने के आदेश को जारी रखा गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक कांस्टेबल की बर्खास्तगी से संबंधित आदेश को यह कहते हुए बरकरार रखा कि इस बल की प्रकृति को देखते हुए ईमानदारी, अनुशासन एवं परस्पर विश्वास सर्वोपरि है। गश्त ड्यूटी के दौरान यह कांस्टेबल सोता हुआ पाया गया था और जब उसे इस बात के लिए एक अधिकारी ने डांटा था तब उसने उसपर कथित रूप से हमला कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कदाचार का आरोप साबित हो जाता है तो सजा की मात्रा निर्णय लेने वाले प्राधिकार के विवेक पर निर्भर करती है और यह उसके अधिकार क्षेत्र में आता है।

इस मामले पर जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि, ‘ऐसी विवेकाधीन शक्तियों में तभी न्यायिक हस्तक्षेप किया जाता है जब उनका गलती के मुकाबले अत्याधिक इस्तेमाल किया गया हो, क्योंकि संवैधानिक अदालतें न्यायिक समीक्षा की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपीलीय प्राधिकरण की भूमिका नहीं अपना सकती हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र एवं अन्य की अपील पर यह फैसला सुनाया। अपीलकर्ताओं ने ओडिशा उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के जनवरी 2018 के फैसले को चुनौती दी थी। जिसमें हाई कोर्ट ने बर्खास्तगी की सजा को दरकिनार करने के एकल पीठ के फैसले पर मुहर लगायी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनाई गई सजा की मात्रा के गुण-दोष पर अदालतें तब तक हस्तक्षेप नही कर सकती हैं जब तक सजा सुनाने में विवेक का इस्तेमाल इस भावना के बिल्कुल विपरीत हो कि यह बिल्कुल गैर आनुपातिक है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह व्यक्ति केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल का कांस्टेबल है और यह अंतरिक्ष विभाग, परमाणु ऊर्जा विभाग जैसे रणनीतिक महत्व के प्रतिष्ठानों एवं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मूलाधार प्रतिष्ठानों के परिसरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जिम्मेदार विशेष पुलिस बल है।

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 24 फरवरी को अपने फैसले में कहा था कि, ‘इस अपीलकर्ता बल की प्रकृति को देखते हुए ईमानदारी, अनुशासन एवं परस्पर विश्वास सर्वोपरि है।’ उसने कहा कि जब मामला, जांच करने और फटकार लगाने वाले अधिकारी पर हिंसा और हमले का हो तो कोई उदारता या छूट नहीं दी जा सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि उक्त कांस्टेबल 2000 में तीन और चार जनवरी की रात को कनिहा में राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम संयंत्र के दो वाच टावरों के बीच गश्ती के लिए पाली ड्यूटी में था और उसे एक अधिकारी ने सोते हुए पाया था।

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