यूपी मे आगामी चुनाव के चलते सियासी पारा बहुत हद तक चढ़ा हुआ है कोई इस सियासी घमासान मे अकेले चुनाव लड़ने का एलान कर रहा है तो कोई गठबंधन करने के लिए पार्टी तलाश कर रहा है। इस घमासान के बीज समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ चुनाव लड़ने का एलान किया था पर इसके बाद भी चाचा- भतीजे मे एक विवाद छिड़ गया है जिस विवाद का कारण है अखिलेश की निर्णय लेने मे देरी।
अब गठबंधन पर जल्द हो जाना चाहिए फैसला : शिवपाल यादव
इस विवाद को लेकर सोमवार को सैफई के चांदगीराम स्टेडियम में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के मौके पर आयोजित दंगल के दौरान प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने सपा मुखिया अखिलेश यादव को अल्टीमेटम दे दिया और कहा कि अब गठबंधन पर फैसला जल्द हो जाना चाहिए। अगर नहीं होगा तो हम लखनऊ में प्रसपा का बड़ा सम्मेलन करेंगे और अपने लोगों से राय लेकर आगे की रणनीति तय करेंगे।
शिवपाल ने सपा के साथ गठबंधन को बताया अपनीप्राथमिकता
साथ ही इस दंगल को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सपा को एक हफ्ते में गठबंधन या विलय का फैसला ले लेना चाहिए कि वह गठबंधन या विलय करने को तैयार हैं या नहीं। अगर एक हफ्ते के अंदर ऐसा नहीं होता है तो फिर लखनऊ में सम्मेलन कर अपने लोगों से राय कर फैसला लेंगे। साथ ही उन्होने कहा कि सपा के साथ गठबंधन करना हमारी प्राथमिकता है। नेताजी के जन्मदिन पर पूरे प्रदेश के लोग गठबंधन पर निर्णय की आस लगाए थे। अब जो भी हो जल्दी हो।
इस मौके पर शिवपाल ने नेताजी का अपने जीवन मे और राजनीति मे महत्तव बताते हुए कहा कि नेताजी ने हमको पढ़ाया भी है, कुश्ती के दांव भी सिखाए हैं। राजनीति के बारे में भी बहुत कुछ सीखा है। एकता में ताकत होती है। परिवार में बिखराव होता है तो बहुत कमियां आती हैं। जिसके बाद उन्होने अखिलेश पर तंज कसते हुए कहा कि हम अपने समर्थकों के लिए 100 सीटें चाहते थे, लेकिन हम अब पीछे हट गए, हम ही झुक गए। पर आज दो साल हो गए यह बात कहे हुए, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ हैं।
सीटों के बंटवारे पर अखिलेश को दी राय
सीटों के बंटवारे को लेकर भी हल निकालते हुए उन्होने सपा को राय देते हुए कहा कि गठबंधन के साथ-साथ जो जीतने वाले लोग हैं, उनको टिकट दे दो, हम विलय के लिए तैयार हैं। समाजवादी पार्टी 303 सीटों पर लड़ ले। हम केवल 50 भी जीत जाएं तो सरकार 2022 में बन जाएगी। गठबंधन या विलय को लेकर अब बहुत देर हो रही है। साथ ही उन्होने इस चुनावी सियासत के बीच अपने संघर्ष को लेकर चर्चा कि औऱ कहा कि मैंने हमेशा त्याग किया। मैं चाहता तो साल 2003 में मुख्यमंत्री बन सकता था, लेकिन मैंने नेताजी को दिल्ली से बुलाकर मुख्यमंत्री बनवाया। दूसरी पार्टियों के 40 विधायक इकट्ठा किए थे। उस वक्त 25 विधायक भाजपा के भी हमारे साथ थे। अजीत सिंह, कल्याण सिंह भी साथ थे।
मथुरा से रथ निकलने के बाद लोगों ने हमारे दल को माना बड़ा : शिवपाल यादव
उन्होंने कहा कि बसपा प्रमुख मायावती के कार्यकाल में हमारे लोगों पर अत्याचार हुआ था। तब विपक्ष में रहते हुए उनका विरोध किया था। कई और आंदोलन किए थे। हमारे व कार्यकर्ताओं के संघर्ष से ही वर्ष 2012 में सरकार बनी थी। पहले लोग हमारे दल को छोटा दल कहते थे, लेकिन मथुरा से रथ निकलने के बाद लोगों वालों को पता लग गया है कि हमारा छोटा दल नहीं है। हमारी प्राथमिकता पर आज भी समाजवादी पार्टी है।