इलकारी बाई के इतिहास के साथ इतिहासकारों ने की छेड़छाड़……………………………………

उत्तर प्रदेश राज्य
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[ KABEER NEWS DESK ]

सन 1857 एक ऐसा कार्यकाल जिसमे हमने अपने समाज के उन महत्तवपूर्ण लोगो को खो दिया जिन्होने हमारे देश को वो आज़ादी दिलाई जिसका सपने उस काल मे हर भारतीय देखता था जिन स्वतंत्रता सेनानियों मे से एक थी झलकारी बाई। देश की प्रथम दीपशिखा, स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना, अमर शहीद झलकारी बाई कोरी। जिनकी 191वीं जयंती नगर में धूमधाम से मनाई गई जिसके अंतर्गत घोड़े पर सवार वीरांगना झलकारी बाई के दृश्य और गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला गया। जिसके बाद बाबासाहेब डॉक्टर अंबेडकर की प्रतिमा पर सभा के साथ समारोह का समापन हुआ।

झलकारी बाई की जयंती पर अपनी मांगो को लेकर महामहिम राष्ट्रपति को सौंपा ज्ञापन

इस मौके पर समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में सलोन के युवा बसपा नेता सुनील दत्त, अंबेडकरवादी चिंतक और संजीव भारती ने समारोह को संबोधित किया। समारोह में अपनी योजनाओं का बखान करते हुए उन्होने केंद्र और राज्य सरकारों को झलकारी बाई की जयंती पर अवकाश घोषित करने, अमेठी गौरीगंज बाईपास के पास झलकारी बाई की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित करने और बाईपास का नाम झलकारी बाई के नाम से रखे जाने की मांग की। जिससे संबंधित ज्ञापन उप-जिलाधिकारी अमेठी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति को सौंपा गया।

आपको बता दे कि स्वतंत्रता सेनानी झलकारी बाई का इतिहास आजादी की कई साल बाद प्रकाश में आया। जिस पर जानकारी देते हुए संजीव भारती ने कहा कि बहुजन संगठन नामक बसपा की मुखपत्र में सबसे पहले झलकारी बाई का इतिहास प्रकाशित हुआ था। जिसमे प्रसिद्ध उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा,  पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद,  पूर्व गृह सचिव जियालाल आर्या सहित एक दर्जन से अधिक साहित्यकारों ने झलकारी बाई पर किताबें लिखी हैं।

झांसी के महासंग्राम का इतिहास लिखने में इतिहासकारों ने किया भेदभाव : डॉ सुनील दत्त

साथ ही झलकारी बाई के इतिहास को लेकर जानकारी साझा करते हुए विशिष्ट अतिथि व सामाजिक चिंतक डॉ सुनील दत्त ने कहा कि झांसी के महासंग्राम का इतिहास लिखने में इतिहासकारों ने भेदभाव किया। झांसी की लड़ाई रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल झलकारी बाई कोरी ने लड़ी थी और रानी लक्ष्मी बाई को झांसी की आन, बान व मर्यादा की रक्षा हेतु सुरक्षित रूप से किले से बाहर निकाल दिया था। और खुद झांसी की कमान को संभालते हुए रानी लक्ष्मी बाई की जगह झलकारी बाई अंग्रेजों से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुई थी।

रानी झलकारी बाई ने जाति धर्म से ऊपर उठकर अपने देश की आन बान की रक्षा करते हुए अपने पति पूरण कोरी के साथ अपने प्राण देते हुए शहीद हो गई थी लेकिन इतिहास में इनके बारे में दबाया गया। वहीं पर ज्योति वर्मा ने सरकार की 22 नंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने पर आलोचना की और सत्यम वर्मा ने सरकार से झलकारी बाई के नाम से खेल पुरस्कार शुरू करने की मांग की। इस कार्यक्रम में अमृतलाल जमुना से दास शिवराम कोटेदार, सुनील कुमार, हेमराज, सपा नेता सुनील यादव आदि लोग मौजूद रहे।

झलकारी की भूमिका निभाने वाली उमा भारती कोरी ने खुद को बताया गौरवान्वित

इस कार्यक्रम में झलकारी बाई की मुख्य भूमिका निभाने वाली उमा भारती कोरी ने मीडिया से बातचीत मे कहा कि हमारे समाज की महिलाओं और लड़कियों को अपने इतिहास के बारे में जानना चाहिए। हमारे देश में ऐसी वीरांगना पैदा हुई हैं, जिनसे कुछ सीख लेनी चाहिए। उन्होने महिलाओं का प्रोत्साहन बढ़ाते हुए कहा कि अगर हमारे समाज की हर लड़की झलकारी बाई जैसी बन जाए तो महिलाओं के साथ अत्याचार होना बंद हो जाएगा। मुझे झलकारी बाई के रोल में बहुत अच्छा लगा और बहुत गर्व महसूस हो रहा है की मुझे झलकारी बाई का रोल अदा करने का मौका मिला। मुझे गर्व है कि मैं भारत की महान वीरांगना झलकारी बाई के परिवार से संबंधित रखती और वो हमारी वंशज थी।

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