3 महीने से न्याय के लिए थाना पुलिस, डीएम, एसपी के चक्कर काट रही दलित महिला

उत्तर प्रदेश राज्य
Spread the love

[ KABEER NEWS DESK ]

भारतीय संविधान में जहां पर महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार दिया गया है, जहां इस देश का कानून सभी के बराबरी के अधिकार की बात करता है, वहीं पर पिछले 3 महीने से एक दलित मां अपनी 14 वर्षीय नाबालिग पुत्री के साथ बिना घर के 3 महीने से रिश्तेदारी नातेदारी में भटक रही है। वहीं पर थाना पुलिस, डीएम, एसपी के पास न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाने के बाद भी महिला को अभी तक इंसाफ नहीं मिला है।

आपको बता दे की ये ताजा मामला रायबरेली के ग्राम पुरे फेरू मजरे दौतरा थाना महाराजगंज का है। जहां पर ब्रज रानी पत्नी श्यामलाल पिछले 3 महीने से अपनी नाबालिग पुत्री के साथ रिश्तेदारी नातेदारी में भटक रही है किंतु उसका ही पति उसे घर में रहने नहीं दे रहा है। घर जाओ तो मारपीट कर भगा देता है, वहीं पर इस दलित महिला के पास रोजी रोटी की कमाई का भी कोई जरिया नहीं है जिसके साथ चलते उसके पति ने उसके पैतृक घर को अपने पड़ोसी शिवनाथ पुत्र अहोरवा के हाथों बेच दिया था जबकि महिला इसका विरोध करती रही।

इस संबंध में न्यायालय में अपील की गई जिसके बाद पुलिस आई और उसने कहा कि हम तुमको रहने के लिए तुम्हारा हिस्सा आधा घर दिलाएंगे। पर उसके बाद पुलिस ने भी विपक्षी से सांठगांठ करके उस महिला को घर नहीं दिलाया। जिसके बाद इस संबंध में महिला रायबरेली की महिला थाना में अपनी नाबालिग बेटी के साथ काफी उम्मीद लेकर पहुंची की महिला थाना की महिला सिपाही या महिला थानेदार हमारी मदद करेंगे और हमें रहने के लिए घर दिलाएंगे किंतु हुआ उल्टा जब महिला अपने नाबालिग पुत्री के साथ महिला थाना रायबरेली पहुंची तो वहां पर पुलिसकर्मियों ने सीधे अपने हाथ खड़े कर लिए और उन्होंने कहा कि मैं इस मामले में आपकी कोई मदद नहीं कर सकती हूं। उसके बाद बुजुर्ग महिला ने डीएम, एसपी सभी को अपना हक मांगने के लिए प्रार्थना पत्र दिया किंतु अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई।

हमारे देश में कहने को तो महिलाओं को सब के बराबर अधिकार है लेकिन क्या हकीकत में महिलाओं को उनका अधिकार मिलता है। हमारे देश में महिला पहले भी गुलाम थी और आज भी गुलाम है, पहले अपने बाप और भाई की गुलामी करती है और जब शादी हो जाती है तो अपने पति की गुलामी करती है और पति के बाद अपने बच्चों की गुलामी करती है लेकिन उनको कभी भी जीने का अधिकार नहीं मिला।

क्या यह मूल अधिकारों का हनन नहीं है, क्या किसी महिला को जीने का अधिकार नहीं है, ऐसे में अब देखना यह है कि आखिर यह बुजुर्ग महिला अपनी नाबालिग बेटी के साथ कब तक भटकती है और जंगल में रहती हैं, जहां पर उसकी बेटी के साथ या उसके साथ कभी भी कोई भी दुर्घटना हो सकती है, क्या इस महिला को मिल पाएगा  इंसाफ? रायबरेली से संवाददाता राजेश राज की रिपोर्ट

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *