इंसाफ न मिलने पर 15 परिवारों ने राष्ट्रपति से लगाई इच्छा-मृत्यु की गुहार

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[ KABEER NEWS DESK ]

उत्तरप्रदेश में एक बार फिर से भाजपा की जीत से जहां पूरे यूपी में खुशी की लहर छाई हुई है तो वहीं दूसरी ओर यूपी के प्रशासन की लापरवाही के चलते कई परिवार अभी भी दुख से पीड़ित हैं। यूपी प्रशासन की इस लापरवाही की भेंट कोई एक परिवार नहीं बल्कि कई परिवार चढ़ हुए हैं। और अपने काम के लिए दर- दर भटक रहे हैं पर कोई नहीं सुन रहा। जिसके अंतर्गत तंग आकर इन परिवारों ने एक निर्णय लिया है।

इस मामले के तहत यूपी के आगरा के 15 परिवारों ने एक-एक पैसा इकट्ठा कर प्लॉट खरीदे थे। पर 26 साल बीतने के बाद भी अभी भी उन्हें इन मकानों का कब्जा नहीं मिला है। लंबे समय से शिकायत करने के बाद भी सुनवाई नहीं होने पर अब हताश होकर इन परिवारों ने 40 करोड़ रुपये की संपत्ति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम करने का निर्णय लिया है। साथ ही इंसाफ नहीं मिलने पर राष्ट्रपति से संसद भवन के परिसर में जहर खाकर इच्छा-मृत्यु की गुहार भी लगाई है।

इस पूरे मामले की जानकारी देते हुए आगरा के गांधी नगर निवासी आरएन शुक्ला जो कि दूरसंचार मंत्रालय से सेवानिवृत्त हैं ने बताया कि वे सेवा के दौरान दिल्ली में रहते हुए 1990-91 में रेल विहार सहकारी समिति के सदस्य बने था। उसमें कुल 302 सदस्य थे। और ये सभी सरकारी नौकरी में थे। जिसके तहत गाजियाबाद की लोनी तहसील स्थित साबदुल्लाबाद में समिति ने 135 बीघा जमीन खरीद कर सदस्यों के लिए प्लॉट काटे।

जिसके बाद 1996 में 330 रुपए प्रति गज के हिसाब से लॉटरी से 100-100 गज के प्लॉट आवंटित किए गए। जिसके बाद 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद जब वह प्लॉट पर गए तो वहां कब्जा हो चुका था। समिति के अध्यक्ष, सचिव व सदस्य भी बदल गए। जिसके चलते 26 साल बाद भी प्लॉट पर मकान नहीं बना पाए। पीड़ितों में दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद के परिवार शामिल हैं।

इनमें से 15 परिवारों ने अपने आवंटन पत्र, स्टांप पेपर व अन्य दस्तावेज पीएम मोदी के नाम लिख दिए हैं। जिनकी कीमत करीब 40 करोड़ रुपये है। पीड़ित आरएन शुक्ला ने बताया कि बैनामा पत्र पर हस्ताक्षर पीएम के सामने करेंगे। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम भी चिट्ठी भेजी है। जिसमें कहा है, इंसाफ करें। अगर नहीं कर सकते तो हमारी संपत्तियां रख लें और हमें इच्छा-मृत्यु की अनुमति प्रदान करें।

उन्होंने बताया कि सभी पीड़ितों ने लौनी पुलिस स्टेशन में इस मामले को लेकर 29 अक्तूबर 2018 को शिकायत दर्ज कराई थी। जिसकी जांच चार साल से आर्थिक अपराध शाखा में लंबित पड़ी है। साथ ही एक अन्य शिकायत डीएम गाजियाबाद से की, जिसकी जांच भी नहीं हो सकी। इसके अलावा आवास विकास आयुक्त, लखनऊ से की गई शिकायत पर भी सुनवाई नहीं हो सकी है।

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